"ज़ूम का मतलब सचमुच में था कि लोग अपनी पसंद की जगह रहना चुन सकते हैं। और लोगों ने वही किया।"
‘द सिटीज़ विन’ के लेखक और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर एडवर्ड ग्लेज़र ने हाल के दो सालों में वर्क फ्रॉम होम के चलन को ‘ज़ूम टाउन’ फ़ेनोमिना का आधार बताया है, जिसके चलन ने शहरवासियों के रहने के स्थान को चुनने के तरीके को भी बदल दिया है। लेकिन अब वर्क फ्रॉम होम का दौर ख़त्म होता दिख रहा है। 25 तारीख को वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अमेरिकी श्रम विभाग के सर्वेक्षण के हवाले से बताया कि पिछले साल 72.5% से ज़्यादा कार्यस्थलों पर वर्क फ्रॉम होम का चलन नहीं था। टेस्ला, अमेज़न जैसी विदेशी कंपनियों के साथ-साथ नेवर, यानोलजा जैसी घरेलू कंपनियां भी महामारी के दौरान अपनाई गई पूर्ण वर्क फ्रॉम होम नीति को आर्थिक मंदी को आधार बनाकर वापस ले रही हैं। लेकिन इस मामले में कर्मचारियों का नज़रिया अब पहले जैसा नहीं रहा। वर्क फ्रॉम होम को वापस लेने की घोषणा के बाद से ही काकाओ के मुख्यालय में काम करने वाले कर्मचारियों में यूनियन (ट्रेड यूनियन) में शामिल होने की दर 10% से बढ़कर लगभग 50% तक पहुँच गई है, और यानोलजा के प्रबंधन को उन कर्मचारियों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है जिन्होंने वर्क फ्रॉम होम को कंपनी द्वारा दिए गए कल्याणकारी लाभ के तौर पर देखा है।
जब बिज़नेस के लीडर ‘काम’ से जुड़े ऐसे हालातों का सामना करते हैं जो व्यक्ति के ज़्यादातर समय को अपने कब्ज़े में ले लेते हैं, तो उन्हें इस बात पर ग़ौर करना चाहिए किकाम सामाजिक और राजनीतिक कल्पनाशक्ति पर भी हावी होता है।
काम व्यक्ति के लिए एक ऐसा माध्यम है जिसके ज़रिए वह एक बड़े समूह यानी सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक समुदाय में अपनी पहचान बनाता है और यह सामाजिक और राजनीतिक मानदंडों द्वारा अदृश्य रूप से निर्देशित होता है। हाल ही में विवादों में घिरा हुआ सरकार द्वारा शुरू किया गया MZ पीढ़ी को ध्यान में रखकर बनाया गया 69 घंटे का काम करने का फ़ॉर्मूला, मूल रूप से काम के दिनों को कम करने के अच्छे उद्देश्य से इतर, कर्मचारी प्रतिनिधित्व के तौर पर काम करने वाले सुरक्षा उपायों की वास्तविकता की कमी को लेकर सामाजिक संबंधों के प्रति ग़ौर फ़रमाने की कमी के कारण आलोचनाओं का सामना कर रहा है। आगे बढ़ते हुए, ज़्यादा से ज़्यादा 69 घंटे काम करने की संभावना पर जनता का ध्यान केन्द्रित होना और इस वजह से गुस्सा होना भी इसी से समझा जा सकता है।
ऐतिहासिक तौर पर हमने मज़दूरी पर आधारित काम को आय वितरण की मुख्य संरचना, नैतिक दायित्व और खुद को और दूसरों को सामाजिक और राजनीतिक रूप से परिभाषित करने के तरीके के तौर पर स्वीकार किया है। लेकिन वर्तमान में जैसे कि कम विकास वाले दौर में ‘नौकरी’ को सामाजिक मूल्य और अर्थ के प्रतीकात्मक मध्यस्थ के तौर पर अपने पहले के केन्द्रीय स्थान को खो देने की बात याद रखने की ज़रूरत है।
कंसल्टिंग कंपनी Gemic ने अमेरिका और भारत के Z पीढ़ी के लोगों पर काम से जुड़ी आदर्श धारणाओं पर आधारित एक अध्ययन किया, जिसमें पता चला कि इस नई जवान पीढ़ी में काम के प्रति नैतिक दृष्टिकोण अभी भी दृढ़ है, लेकिन वे अच्छी ज़िन्दगी के लिए खान-पान और स्वास्थ्य पर ज़्यादा ज़ोर देते हैं। दिलचस्प बात यह है कि ‘अच्छी ज़िन्दगी’ को आकार देने के लिए वे खान-पान और स्वास्थ्य को प्राथमिकता तो देते हैं, लेकिन काम कम करना या बिलकुल नहीं करना, इस पर उतना ध्यान नहीं देते।
"ऑफ़िस में 12 घंटे बिताकर ऑनलाइन पोस्ट करना फ़्लैक्स (शो ऑफ) है। लेकिन हर दिन 5 घंटे जिम में एक्सरसाइज़ करना और इंस्टाग्राम और टिकटॉक पर सभी को बताना भी फ़्लैक्स है।"
इस अध्ययन में हिस्सा लेने वाली एक 25 साल की अमेरिकी महिला का जवाब बताता है कि काम अब अच्छी ज़िन्दगी के लिए पहले जैसा सर्वोच्च विषय नहीं रहा, बल्कि स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए एक्सरसाइज़ करने जैसे ही निम्न स्तर का विषय बन गया है। दूसरे शब्दों में कहें तोलोग ‘काम से आज़ादी’ नहीं, बल्कि ‘ज़िन्दगी के सक्रिय हालातों को बनाने’ की चाह रखते हैं।यानी,समय का सदुपयोग कैसे करें, यह एक ऐसा एकीकृत विषय बन गया है जो अब काम और निजी ज़िन्दगी जैसे उप-विषयों को अपने में समेटे हुए है, इस समय के परिवर्तन पर ग़ौर करने की ज़रूरत है।।
'अच्छी ज़िन्दगी' के लिए काम का मानदंड: The Meaning of Time
कंपनियों के लिए यह समझना ज़रूरी होता जा रहा है कि कर्मचारी काम को लेकर कैसे बदलते हुए महसूस कर रहे हैं। ऑफ़िस आना सिर्फ़ उत्पादकता और कल्याणकारी लाभों तक सीमित नज़रिए से नहीं, बल्कि कंपनी और कर्मचारियों के बीच बिताए जाने वाले समय को लेकर आपसी उम्मीदों और भूमिकाओं पर चर्चा करने से ही दोनों पक्षों के बीच तालमेल बिठाया जा सकता है। पैसे कमाने के साधन के तौर पर नौकरी और कार्यस्थल पहले जैसी उच्च प्राथमिकता में नहीं रह सकते हैं, लेकिन कम होते जा रहे सामाजिक समुदाय से जुड़ाव की भावना प्रदान करने और सार्थक समय बिताने का अवसर देने में उनकी भूमिका बढ़ सकती है।
पिछले महीने ज़ूम के CEO एरिक युआन ने अपने 15% कर्मचारियों, यानी लगभग 1,300 कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा की थी। यह कदम 2 सालों में कर्मचारियों की संख्या को 3 गुना बढ़ाने के बाद उठाया गया है, जो इस महीने 8 तारीख को कोरिया में 8वाँ वैश्विक शाखा खोलने की घोषणा से मेल नहीं खाता है, जो एक विरोधाभासी निर्णय प्रतीत होता है। सरकार द्वारा MZ पीढ़ी का ज़िक्र करते हुए प्रस्तुत 69 घंटे के काम करने का फ़ॉर्मूला लाने का कानून राष्ट्रपति के निर्देशों के चलते कुछ समय के लिए रुक गया है।यह थोड़े-बहुत अलग दिखने वाले काम के भविष्य और संकट के प्रति कर्मचारियों की वास्तविक प्रतिक्रियाएं कंपनियों और सरकार दोनों के लिए एक अवसरहो सकती हैं।
ख़ास तौर पर ज़ूम ने अपने प्लेटफ़ॉर्म पर ईमेल और कैलेंडर की सुविधा को शामिल किया है और आने वाले समय में AI आधारित चैटबॉट भी लॉन्च करने की योजना बना रहा है, इस बात से पता चलता है कि यह अब सिर्फ़ एक वीडियो कॉलिंग सर्विस से ज़्यादा बनने की ओर बढ़ रहा है। इसलिए ‘काम’ पर केन्द्रित नज़रिए से हटकरउपयोगकर्ताओं की ज़िन्दगी को बेहतर बनाने की उम्मीदों और समझ को समझकर काम के समय के बेहतर भविष्य का सुझाव देकर मौके को भुना सकता है।। ज़िन्दगी की बदलती हुई संरचना को समझना बहुत ज़रूरी है, भले ही वो दिखने में साधारण लगे। इस लेख को इस मुश्किल काम की शुरुआत और प्रेरणा के तौर पर देखा जा सकता है। जुड़ाव यहीं से शुरू हो सकता है।
*यह लेख 23 मार्च 2023 को इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़ पेपर के एक कॉलममें छपा था।
संदर्भ
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